सालासर बालाजी इतना प्रसिद्ध क्यों है? Salasar balaji Etne Prasidh Kyu Hai
Salasar Balaji Mandir राजस्थान के चुरू जिले में हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर जो की सालासर बालाजी Salasar Balaji के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध है सालासर बालाजी की प्रकट होने की कथा बहुत ही चमत्कारी है कहते हैं कि सालासर बालाजी अपने सभी भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं तो आईए जानते हैं सालासर बालाजी कैसे प्रकट हुए उनके बारे में कुछ चमत्कार बातें (Salasar Balaji Etihas)
चमत्कारिक मूर्ति और दिव्य दर्शन
Salasar Balaji Mandir सालासर बालाजी की मूर्ति को बहुत ही चमत्कारी मूर्ति माना जाता है मान्यता के अनुसार यदि कोई भक्त इस मूर्ति के दर्शन करता है तो उसकी मनोकामना आवश्यक पूरी होती है सालासर जी की मूर्ति की उत्पत्ति भी बहुत ही चमत्कारिक मानी जाती है|
दाड़ी वाले हनुमान जी | Dadi Wale Hanuman Ji
Salasar Dham पूरी दुनिया में सालासर बालाजी में हनुमान जी दाड़ी मूंछ वाले हनुमान जी के नाम से प्रसिद्ध हैं सालासर बालाजी पूरी दुनिया में इकलौता हनुमान जी की मूर्ति है जहां पर हनुमान जी भगवान के दाढ़ी मूंछ आई हुई है
सालासर बालाजी का इतिहास |और उत्पत्ति की दिव्य कथा
सालासर बालाजी का इतिहास 1754 ई सी का माना जाता है एक साधु मोहनदास जो हनुमान जी भगवान के बहुत बड़े भक्त थे कहां जाता है कि एक दिन संत मोहनदास जी अपनी बहन कन्ही बाई के घर भोजन कर रहे थे उस समय उनके घर के दरवाजे पर एक साधु आए और वह भिक्षा मांग रहे थे कन्ही दरवाजे पर थोड़े विलंब से पहुंची तो साधु जा चुके थे फिर मोहनदास जी दौड़े-दौड़े उनके पीछे चले गए क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि बालाजी ही थे जो साधु के भेष में भिक्षा मांगने आए थे और जाकर सीधा उनके चरणों पर गिर पड़े विल्म के लिए उन्होंने बालाजी से क्षमा याचना की फिर बालाजी ने अपना शरीर धारण कर लिया और हनुमान जी बोले कि मैं जानता हूं कि तुम मेरे सच्चे भक्त हो जो चाहे वह मांग लो उन्होंने बोला कि मेरी बहन कन्ही भी आपके दर्शन करना चाहती है
फिर बालाजी बोले ठीक है मैं तुम्हारे घर मिश्री खीर और चूरमे का भोजन करूंगा महात्मा जी बालाजी को घर ले आए और पूरी भक्ति श्रद्धा के साधन को भोजन कराया फिर बालाजी बोले कि मैं इस सालासर गांव में सदा के निवास करने वाला हूं मेरे घर में अपने भक्तों की मनोकामना को पूरा करूंगा भोजपुरी सरदार भक्ति के साथ जो भी समर्पित करेंगे उन्हें मैं प्रसन्न होकर स्वीकार करूंगा और फिर वहां से अदृश्य हो गए
फिर मोहन दास जी अपने प्रभु के प्रति इतने समर्पित हो गए कि अब उनसे एक क्षण अभियान से दूर नहीं रह रहना चाहते थे इसलिए बार-बार हनुमान जी महाराज को उनका दर्शन देने के लिए आना पड़ता है अब महात्मा जी उनसे हमेशा पूजा करने की प्रार्थना करने लगे भगवान ने अपने भक्ति प्रार्थना स्वीकार करते हुए कहा कि मैं मूर्ति स्वरूप में तेरे पास सालासर में रहूंगा यह वरदान देता हूं इस वरदान की प्राप्ति और महात्मा जी हनुमान जी की प्रतीक्षा करने लगे
उसके बाद फिर एक दिन असोटा गांव में एक किसान खेत की जुताई का कार्य करते समय उसके हाल का फॉर्म किसी वस्तु में अटक रहा था फिर किसान के द्वारा उस जगह की खुदाई करने पर वहां पर श्री राम लक्ष्मण को कंधे पर बिठाते हुए श्री हनुमान जी महाराज की एक मूर्ति मिली फिर किसान ने श्रद्धापूर्वक मूर्ति की सफाई की और अपनी पत्नी को दिखाइए किसान की पत्नी ने बहुत ही श्रद्धापूर्वक भक्ति भाव से मूर्ति को रोटी के चूरमे का भोग लगाया तथा गांव के ठाकुर को सूचना दी
ठाकुर मूर्ति को से सम्मान पूर्वक घर लेकर आए फिर एक दिन जब ठाकुर सो रहे थे तो उनको एक आवाज सुनाई दी मैं भक्त महात्मा के लिए प्रकट हुआ हूं मुझे तुरंत सालासर पहुंचाओ ठाकुर को तुरंत ही महात्मा जी द्वारा गठित वार्ता का स्मरण हो गया
जब असोटा गांव के ठाकुर माताजी दर्शन के लिए गए थे और उनके द्वारा महात्मा जी से सेवाहित आग्रह करने पर मोहन दास जी ने कहा कि आपके यहां मूर्तिकार है अगर है तो मुझे हनुमान प्रभु की मूर्ति बना कर भेजना है ठाकुर ने समय उनको मूर्ती बनवाकर भिजवाने का विश्वास दिया था|
फिर मूर्ति को एक बेल गाड़ी पर सालासर के लिए प्रस्थान कराया गया महात्मा महात्मा जी ने निर्देश दिया था कि बेल जहां पर भी रुकेगा वहीं पर मूर्ति की स्थापना होगी कुछ समय के बाद बेल रेत के टीलों पर जाकर रुक गया इस पावन पवित्र स्थान पर विक्रम संवत 1811 श्रवण शुक्ल नवमी 1755 शनिवार के दिन श्री बालाजी महाराज की मूर्ति की स्थापना की गई विक्रम संवत 1815 सन: 1759 में नूर मोहम्मद वेदु नामक दो मुस्लिम कारीगरों ने मंदिर का निर्माण करवाया था जो कि सांप्रदायिक सौहार्द एवं भाईचारे का अनुपम उदाहरण है