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खाटू श्याम मंदिर | खाटू श्याम मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? | Khatu Shyam Mandir

खाटू श्याम मंदिर क्यों प्रसिद्ध है? | Khatu Shyam Mandir

खाटू श्याम मंदिर | Khatu Shyam Mandir:  खाटू श्याम जी का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित है खाटू श्याम जी को इस कलयुग में श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है और इस कलयुग में खाटू श्याम के भक्तों की संख्या लाखों में है और जो की दिन पर दिन बढ़ती जा रही है खाटू श्याम जी को हारे का सहारा भी  कहा जाता है कहते हैं कि जो भी भक्त इनके पास अपनी परेशानियां लेकर आता है वह सारी परेशानियां एक हर लेते है लाखों की संख्या में  भक्त खाटू श्याम के दर्शन करने आते हैं  क्योंकि भक्तों का खाटू श्याम के प्रति बड़ा ही अटूट विश्वास है  क्योंकि  उनका ऐसा मानना है कि भगवान खाटू श्याम उनके सभी मनोकामना को पूर्ण करते हैं  और खाटू श्याम मंदिर   पूरे भारतवर्ष में  सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है भगवान खाटू श्याम  का संबंध  महाभारत की युद्ध के दौरान से है  भगवान खाटू श्याम का नाम पहले  बर्बरीक हुआ करता था  लेकिन महाभारत  में हुए  युद्ध के बाद  भगवान श्री कृष्ण ने  बर्बरीक से प्रसन्न होकर  उन्हें श्याम नाम की उपाधि दी  खाटू नगर में स्थित होने के कारण  इनका नाम खाटू श्याम पड़ गया |

आज के लेख में हम  ऐसे ही कुछ अनसुलझे सवालों के जवाब  जानेंगे  आखिर खाटू श्याम मंदिर क्यों  प्रसिद्ध है,  खाटू श्याम का इतिहास क्या है,  खाटू श्याम मंदिर  कैसे जाएं,  आखिर कलयुग में ही क्यों पूजे जाते हैं भगवान खाटू श्याम,  सफलता का श्याम मंत्र क्या है,  खाटू श्याम आरती  किस प्रकार करनी चाहिए,  खाटू श्याम मंदिर का समय क्या है,  खाटू श्याम मंदिर की मान्यता क्या है,  खाटू श्याम मंदिर में कौन-कौन से चमत्कार हुए हैं,  खाटू श्याम चालीसा कब और क्यों करनी चाहिए,  खाटू श्याम मंदिर कांटेक्ट नंबर क्या है, बाबा को प्रसन्न करने के उपाय कौन-कौन से हैं, खाटू श्याम को किन-किन नामों से जाना जाता है  ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर आज  हम इसमें जानने वाले हैं  तो हमारे साथ में बने रहे !

देखिये तो आपके लिए क्या आवश्यक हैं ?

खाटू श्याम जी के बारे में अधिक जानें :-  खाटू श्याम मंदिर 

श्याम बाबा की पूजा कैसे करनी चाहिए

खाटू श्याम मंदिर क्यों प्रसिद्ध है:  यदि आप  खाटू श्याम बाबा के बारे में  अधिक जानने के इच्छुक हैं तो  हमने नीचे सारणी में  खाटू श्याम बाबा के बारे में  कुछ पोस्ट मेंशन की है  जिसमें आप  खाटू श्याम बाबा  का इतिहास,  खाटू श्याम बाबा  का नाम, खाटू श्याम मंदिर जाने का रास्ता,  खाटू श्याम जी की आरती  को पढ़ सकते हैं – खाटू श्याम मंदिर क्यों प्रसिद्ध है| 

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खाटू श्याम मंदिर जाने का रास्ता क्लिक करें
खाटू श्याम कौन हैं तथा उनसे जुड़ी 10 बातें क्लिक करें
खाटू श्याम जी की आरती क्लिक करें
खाटू श्याम जी का व्रत कब किया जाता है? क्लिक करें

खाटू श्याम मंदिर  की विशेषताएं | Khatu Shtam Mandir 

खाटू श्याम मंदिर  सफेद संगमरमर के पत्थर से बनाया गया है  जो कि देखने बहुत ही सुंदर  लगता है  और यह मंदिर  किसी चमत्कार से कम नहीं है  क्योंकि यहां आए हर  भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है  और दुनिया भर  से लोग  इस मंदिर के दर्शन करने तथा इसकी सुंदरता को निहारने आते हैं|  जो देखने में काफी  मनमोहक लगता है मंदिर परिसर में स्थित एक जगमोहन नामक  प्रार्थना कक्ष में  काफी सुंदरता के साथ  पौराणिक दृश्यों को  दर्शाया गया है  

  • एक चांदी से बनी हुई सुंदर चादर गर्भ गृह के शटर को  दर्शाती है  जो मंदिर की सुंदरता  को और भी मनमोहक बनाती है 
  • खाटू श्याम मंदिर के प्रवेश द्वार को संगमरमर के पत्थरों से निर्मित किया गया है जो कि इस मंदिर की  सुंदरता को काफी बढ़ाते हैं
  •  और खाटू श्याम मंदिर में स्थित  श्याम कुंड  खाटू श्याम मंदिर की  शोभा को बढ़ाते हैं  और ऐसा माना जाता है कि  इसी श्याम कुंड में  खाटू श्याम भगवान का  शीश मिला था  

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खाटू श्याम मंदिर की मान्यता | Khatu Shyam Mandir

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खाटू श्याम मंदिर भारतवर्ष में  प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है  जहां भारत  के कोने-कोने से  लोग बाबा श्याम जी दर्शन करने आते हैं  उनका मानना है कि  बाबा  श्याम  उनकी सभी मनोकामना को पूर्ण करते हैं  और इसी कारण से  इस मंदिर में प्रतिदिन लाखों की संख्या में बाबा श्याम के दर्शन करने आते हैं भगवान श्री कृष्ण के विभिन्न मंदिरों में से  खाटू श्याम मंदिर को भी माना जाता है 

महाभारत काल से खाटू श्याम का क्या संबंध है 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बाबा श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। बाबा श्याम का पूर्व नाम बर्बरीक था, जो महाशक्तिशाली भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे। उन्होंने कठोर तपस्या कर तीन बाण प्राप्त किए थे, जिससे वे तीनों लोकों को जीत सकते थे। जब बर्बरीक को महाभारत युद्ध के बारे में पता चला, तो उन्होंने भी इसमें भाग लेने का निश्चय किया।

भगवान श्रीकृष्ण यह जानते थे कि इस युद्ध में पांडवों की जीत निश्चित है, लेकिन यदि बर्बरीक इसमें हिस्सा लेंगे, तो इसका परिणाम कुछ और हो सकता है। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक से महाभारत युद्ध भूमि पूजन के लिए शीश मांगा। बर्बरीक ने अपना शीश दान कर दिया, जिससे भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हुए और उन्होंने बर्बरीक को वरदान दिया कि आज से वे श्याम के नाम से जाने जाएंगे और कलयुग में आपकी ही पूजा की जाएगी।

बाबा श्याम की इस महान बलिदान और भक्ति की कहानी से हमें उनकी असीम शक्ति और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा का पता चलता है। इसी कारण आज खाटू श्याम की पूजा और भक्ति का इतना महत्त्व है।

 खाटू श्याम मेला 

हर वर्ष होली से कुछ दिन पहले खाटू श्याम मंदिर परिसर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में देश और विदेश से लाखों की संख्या में भक्त बाबा श्याम के दर्शन करने आते हैं। खाटू श्याम मेले की यह भी मान्यता है कि वहाँ आए भक्तों की सेवा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। बाबा श्याम को उनके भक्त अलग-अलग नामों से बुलाते हैं, जैसे: बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, खाटू श्याम जी, तीन बाण धारी, लीले के असवार, नीले घोड़े का सवार, खाटू नरेश, शीश के दानी, मोरवी नंदन, आदि। इस मेले में भाग लेने से भक्तों को अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव और शांति प्राप्त होती है, और उनकी भक्ति और भी प्रगाढ़ हो जाती है।

 

खाटू श्याम मंदिर तालाब | श्याम कुंड 

खाटू श्याम मंदिर की स्थापना इस मंदिर के तालाब या श्याम कुंड के कारण हुई थी। वर्तमान में जहां खाटू श्याम मंदिर में तालाब है, उसी स्थान पर भगवान श्याम का शीश पाया गया था। इस तालाब को श्याम कुंड के नाम से भी जाना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि इस तालाब में डुबकी लगाने से आपकी बीमारियां समाप्त हो जाती हैं। इसलिए, जब भी आप खाटू श्याम मंदिर के दर्शन करने जाएं, तो पास में ही स्थित श्याम कुंड में डुबकी अवश्य लगाएं। यह भी मान्यता है कि श्याम कुंड में स्नान करने से मानसिक और शारीरिक शुद्धि प्राप्त होती है, और भक्तों को नई ऊर्जा और आत्मविश्वास का अनुभव होता है।

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खाटू श्याम मंदिर मे होने वाली आरती | Khatu Shyam Mandir

श्याम बाबा की पूजा कैसे करनी चाहिए, खाटू श्याम जी की आरती

खाटू श्याम मंदिर में  आरती एक  विशेष प्रतिक्रिया है  जो प्रतिदिन की जाती है  और यदि आप  खाटू श्याम मंदिर जा रहे हैं तो आप मंदिर में होने वाली आरती के बारे में  अवश्य पता होना चाहिए  तो चलिए  अब हम  खाटू श्याम मंदिर में होने वाले आरती के बारे में   बारी बारी से समझते हैं 

मंगला आरती

 मंगला आरती  खाटू श्याम मंदिर में  पहली आरती की जाती है  जब मंदिर के कपाट  भक्तों के लिए खोले जाते हैं  तब  सबसे पहले मंगला आरती की जाती है 

श्रृंगार आरती

 यह आरती  खाटू श्याम जी की मूर्ति को  फूलों से  सजाने के बाद  की जाती है  और यह  दृश्य  बड़ा ही मनमोहक और प्यारा होता है 

भोग आरती

 यह आरती  जस्ट  श्रृंगार आरती के बाद की जाती है  और इस आरती  से पहले  खाटू श्याम भगवान को  भोग लगाया जाता है 

संध्या आरती

 खाटू श्याम मंदिर में   यह आरती  चौथे नंबर पर की जाती है  और यह आरती का समय  सूर्यास्त के समय होता है 

सयाना आरती

 सयाना आरती  मंदिर को  बंद करने से पहले  किया जाता है 

खाटू श्याम की आरती कितने बजे होती है?

 खाटू श्याम मंदिर में  आरती का समय  सर्दी और गर्मी के मौसम के हिसाब से  चेंज होता रहता है  जो नीचे दी हुई सारणी में  दर्शाया गया है  कुछ इस प्रकार है 

आरती वंदना गर्मियों का मौसम सर्दियों का मौसम
मंगला आरती प्रतिदिन सुबह 4:30 बजे सुबह 5:30 बजे
शृंगार आरती प्रतिदिन सुबह 7:00 बजे सुबह 8:00 बजे
भोग आरती प्रतिदिन दोपहर 12:30 बजे दोपहर 12:30 बजे
संध्या आरती प्रतिदिन शाम 7:30 बजे शाम 6:30 बजे
विश्राम या सयाना आरती प्रतिदिन रात्रि 10:00 बजे रात्रि 9:00 बजे

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खाटू श्याम मंदिर खुलने का समय

खाटू श्याम मंदिर गर्मी में सर्दी के दिनों में खुलने का समय  कुछ इस प्रकार है   गर्मियों में खाटू श्याम मंदिर  4:30 बजे से  दोपहर 12:30 बजे तक  और शाम को  4:00 बजे से लेकर  रात के 10:00 बजे तक मंदिर खुला रहता है  और वही सर्दी के मौसम में  खाटू श्याम मंदिर सुबह 5:30 से लेकर  दोपहर 1:00 बजे तक और शाम को 4:30 से लेकर  9:30 बजे तक  खुला रहता है  इस बीच भक्त कभी भी आकर खाटू श्याम बाबा के दर्शन कर सकते हैं 

खाटू श्याम में क्या क्या देखने लायक है?

श्याम भगवान के दर्शन करने आ रहे हैं तो  हम आपको बताना चाहेंगे  कि खाटू श्याम मंदिर के आसपास ऐसी भी कई जगह है जहां  घूम सकते हैं 

श्री श्याम कुंड

श्याम मंदिर के पास ही श्याम कुंड बना है  जिसके बारे में ऐसा माना जाता है कि  इसी कुंड से खाटू श्याम जी का शीश प्रकट हुआ था  और जो भी  इस कुंड में  डुबकी लगाता है  उसके शरीर की सारी बीमारियां  खत्म हो जाती हैं  और आपकी जानकारी के लिए बता दें इस कुंड को दो भागों में विभाजित किया गया है 1.  महिला श्याम कुंड 2.  पुरुष श्याम कुंड

श्री श्याम वाटिका 

खाटू श्याम मंदिर के बाई तरफ  आपको  एक बगीचा दिखाई देगा इन्हीं बगीचों के  फूलों से भगवान श्याम का  सिंगार किया जाता है यहां इस बगीचे में आपको  कई प्रकार के फूल देखने को नजर आएंगे  और इस वाटिका में ही आपको श्याम भक्त आलू सिंह की मूर्ति नजर आएगी

खाटू श्याम मंदिर जाने का रास्ता | Khatu Shyam Jane Ka Rasta

Khatu Shyam Jane Ka Rasta: यदि आप भी  राजस्थान के सीकर जिले में  खाटू नगर में स्थित खाटू श्याम बाबा के दर्शन करना चाहते हैं तो  आप भी इन 3 तरीकों से  खाटू श्याम मंदिर आकर  भगवान खाटू श्याम के दर्शन कर सकते हैं  अरे तीन रास्ते हैं बस, ट्रेन और हवाई जहाज  

यदि आप  खाटू श्याम मंदिर जाने का रास्ता  के बारे में  विस्तारपूर्वक जानना चाहते हैं तो  हमारे दूसरे आर्टिकल  खाटू श्याम  मंदिर जाने का रास्ता  को अवश्य पढ़ें  आशा करते हैं कि  इस आर्टिकल से आपको  खाटू श्याम  मंदिर जाने का रास्ता  से आपके सभी प्रश्नों के  उत्तर अवश्य मिल जाएंगे 

खाटू श्याम जी का इतिहास – Khatu Shyam History

Khatu Shyam History | श्री खाटू श्याम बाबा कौन हैं? खाटू श्याम की कहानी क्या है ? 

खाटू श्याम जी का इतिहास ( Khatu Shyam History )  बहुत ही रोमांचक है जिसे जानने के लिए हमें महाभारत कथा में चलना पड़ेगा जैसा कि हमने ऊपर दिए हुए पंक्तियों में  पढ़ा की बर्बरीक ने श्री कृष्ण जी के कहने पर  मां दुर्गा की घोर तपस्या की और उनसे वरदान स्वरुप तीन बाण और अग्निदेव द्वारा धनुष प्राप्त हुआ था, इधर महाभारत में  पांडवों और कौरवों के बीच  महाभारत का युद्ध चल रहा था  जैसे ही इस महाभारत के युद्ध की जानकारी बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी  इस युद्ध में शामिल होने के लिए अपनी इच्छा जताई और अपनी मां से आशीर्वाद लेने के लिए गए आशीर्वाद देते हुए  बर्बरीक की मां मतलब मां मोरवी ने बर्बरीक से हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन लिया फिर इसके  बाद बर्बरीक तीन बाण और धनुष के साथ अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार  होकर कुरुक्षेत्र की तरफ निकल पड़े !

जब यह बात भगवान श्री कृष्ण को पता चली कि बर्बरीक भी इस महाभारत की युद्ध में हिस्सा लेंगे तो भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को रोकने के लिए कुछ योजनाएं बनाई क्योंकि वह अच्छी तरीके से जानते थे की बर्बरीक हारे हुए पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे और इस युद्ध में  कौरवों की हार निश्चित थी और यदि  बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो युद्ध का परिणाम कुछ और ही होगा इसलिए  भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया  और बर्बरीक के सामने आकर खड़े हो गए और उनसे उनके बारे में जानने लगे जब बर्बरीक ने बताया कि वह महाभारत युद्ध में हिस्सा लेने जा रहे हैं भगवान श्री  कृष्ण  ने उनका मजाक उड़ाया और कहां इन तीन बातों को लेकर तुम महाभारत में युद्ध लड़ने जा रहे हो 

उस ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण की  इस बात को सुनकर बर्बरीक ने उन्हें बताया कि यह बाण कोई सामान्य बाण नहीं है  उन्हें यह बाण मां दुर्गा ने दिया है और मात्र सिर्फ एक बाण से ही  विजय प्राप्त की जा सकती है  इस बात को सुनकर  भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें पास में लगे एक पेड़ के सभी पत्तो को भेदने की चुनौती दी इस चुनौती को सुनकर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार कर ली  और अपने पीठ पर बंधे तीन बाण में से एक बाण निकाला और पेड़ के पत्तों की और चलाया उस बाण में छन भर में ही पेड़ के सभी पत्तो को भेद दिया और भगवान श्री कृष्ण के आसपास चक्कर लगाने लगा क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने उस पेड़ का एक पत्ता अपने पैरों के नीचे छुपा लिया था इस पर बर्बरीक ने उन्हें  अपना पैर हटाने को कहा नहीं तो यह बाण उनके पैर को भी भेद देगा 

 जब यह नजारा देखने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वह है  महाभारत के युद्ध में  किस पक्ष की और से शामिल होंगे तब बर्बरीक ने अपनी माता को दिए हुए वचन को दोहराते हुए कहा कि मैं इस युद्ध में  निर्बल और हार रहे पक्ष का साथ दूंगा मतलब उनकी ओर से  लडूंगा फिर श्री कृष्ण ने  बर्बरीक से दान की अभिलाषा  व्यक्त की इस पर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि जो भी वे मांगेंगे उन्हें बर्बरीक देंगे ब्राह्मण का वेश धारण किए हुए  भगवान श्री कृष्ण ने  बर्बरीक से दान में उनका  शीश माँगा और बर्बरीक वचन को निभाते हुए फाल्गुन मास की  द्वादशी को अपना शीश दान में दे दिया था  इसी कारण से उन्हें आज  शीश के दानी के नाम से भी जाना जाता है

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मंदिर का इतिहास | खाटू श्याम मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

खाटू श्याम को पहले  बर्बरीक के नाम से जाना जाता था बर्बरीक से खाटू श्याम तक का सफर  महाभारत काल से शुरू होता है बर्बरीक बचपन से ही एक महान योद्धा थे  जो घटोत्कच  व   मोरवी  के पुत्र हैं बर्बरीक ने युद्ध की कला अपनी मां मोरवी और भगवान श्रीकृष्ण से प्राप्त की थी  फिर भगवान श्री कृष्ण के कहने पर बर्बरीक ने  मां दुर्गा की घोर तपस्या कर मां दुर्गा को प्रसन्न किया और उनसे तीन अमोघ बाण प्राप्त हुए  इसी कारण से  खाटू श्याम/ बर्बरीक  तीन बाण धारी  के नाम से भी जाने जाते हैं और उनकी तपस्या को देख अग्निदेव ने  भी  उन्हें  एक ऐसा धनुष प्रदान किया  जो  इन्हें तीनों लोकों पर विजय दिला सकता था कलयुग में बर्बरीक को ही खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है और बर्बरीक को “श्याम”  नाम  भगवान श्री कृष्ण ने  दिया था

खाटू श्याम मंदिर का इतिहास महाभारत काल में देखा जा सकता है। भीम के प्रपौत्र, वीर बर्बरीक भगवान कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। भगवान कृष्ण के प्रति अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में, वह अपने सिर का बलिदान करते हैं। बर्बरीक की भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान कृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें वरदान दिया कि उन्हें कलियुग में श्याम के रूप में पूजा जाए। खाटू गांव में वीर बर्बरीक को “श्री खाटू श्याम” के रूप में भी पूजा जाता है। वह अपने भक्तों के बीच लोकप्रिय रूप से “ हारे के सहारा” के रूप में जाने जाते हैं।

क्षेत्र के लोगों का मानना है कि जब भी कोई भक्त पूरी श्रद्धा और शुद्ध मन से भगवान से प्रार्थना करता है, तो उसकी मनोकामना पूरी होती है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण खाटू क्षेत्र के शासक राजा रूप सिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने करवाया था। लोककथाओं के अनुसार, राजा रूप सिंह को अपने सपने में खाटू के एक कुंड से श्याम शीश निकालकर एक मंदिर बनाने के लिए कहा गया था जिसे अब “श्याम कुंड” के रूप में जाना जाता है।

एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार लगभग 1000 वर्ष पूर्व बाबा का सिर एकादशी के दिन श्याम कुंड में मिला था। कुंड के पास पीपल का एक बड़ा पेड़ था।

जब भी गायें पेड़ के पास चरतीं तो गायों का दूध अपने आप बहता था। इससे ग्रामीणों को आश्चर्य हुआ और जब उन्होंने इस क्षेत्र की खुदाई की तो उन्हें बाबा श्याम का सिर मिला। सिर रानी नर्मदा कंवर को सौंप दिया गया। मंदिर में शीश की स्थापना विक्रम संवत में 1084 में हुई थी।  और इन्हीं कारणों के कारण  खाटू श्याम मंदिर प्रसिद्ध है 

और भी पढ़े खाटू श्याम के बारे मे: खाटू श्याम मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

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