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History of Khatu Shyam | कौन हैं बाबा खाटू श्याम | जानिए खाटू श्याम का इतिहास | क्यों कहा जाता है उन्हें हारे का सहारा | Khatu Shyam Temple

Khatu Shyam

Khatu Shyam History | खाटू श्याम का इतिहास: खाटू श्याम जी का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान राज्य के सीकर जिले के खाटू गांव मैं स्थित है खाटू श्याम जी को इस कलयुग में श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है और इस कलयुग में खाटू श्याम के भक्तों की संख्या लाखों में है और जो की दिन पर दिन बढ़ती जा रही है खाटू श्याम जी को हारे का सहारा भी कहा जाता है कहते हैं कि जो भी भक्त इनके पास अपनी परेशानियां लेकर आता है वह सारी परेशानियां खुद ही हर लेते हैं(history of khatu shyam)   मगर मान्यता यह है कि राजस्थान के सीकर जिले में  स्थित  खाटू श्याम मंदिर सबसे सुप्रसिद्ध है  भगवान श्याम को  खाटू नगर में स्थापित होने की कारण  खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है यह मंदिर  1,000 से अधिक साल पुराना है साथ में  भगवान खाटू श्याम को  कलयुग संसार में आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है , इस मंदिर में  प्रतिदिन  लाखों की संख्या में श्रद्धालु  बाबा श्याम के दर्शन करने आते हैं  और ऐसा भी कहा जाता है कि जो भक्त यहां आकर खाटू श्याम (Khatu Shyam Mandir) के दर्शन करते हैं और जो मनोकामनाएं मांगते हैं,  बाबा श्याम उनकी सभी मनोकामना को पूरा करते हैं – खाटू श्याम का इतिहास (khatu shyam history)

खाटू श्याम का इतिहास (khatu shyam story) जाने से पहले  हम आपको बताते हैं  की   खाटू श्याम को  उनके भक्त  किन किन नामों से पुकारते हैं  तो बाबा श्याम को उनके भक्त खाटू श्याम जी, नीले घोड़े का सवार,  तीन बाण धारी,  लखदातार, हारे का सहारा, शीश का दानी, मोर्वीनंदन, खाटू वाला श्याम, खाटू नरेश, श्याम धनी, आदि नामों से बुलाते हैं  इस लेख में  हम जानेंगे  खाटू श्याम जी की कथा, खाटू श्याम का इतिहास (khatu shyam history), खाटू श्याम मंदिर, खाटू श्याम मंदिर जाने का रास्ता, खाटू श्याम कौन हैं तथा उनसे जुड़ी 10 बातें, खाटू श्याम जी की आरती, खाटू श्याम जी भजन लिरिक्स, खाटू श्याम बाबा को प्रसन्न करने के उपाय तथा अन्य बहुत कुछ  हम जानेंगे  तो चलिए  इस लेख को आगे बढ़ाते हैं  तो हमारे साथ मिलकर बोलिए  हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा जय !!! – खाटू श्याम का इतिहास -khatu shyam story in hindi

खाटू श्याम का इतिहास – Khatu Shyam History in Hindi

खाटू श्याम का इतिहास: खाटू श्याम मंदिर क्यों प्रसिद्ध है – यदि आप  खाटू श्याम बाबा के बारे में  अधिक जानने के इच्छुक हैं तो  हमने नीचे सारणी में  खाटू श्याम बाबा के बारे में  कुछ पोस्ट मेंशन की है  जिसमें आप  खाटू श्याम बाबा  का इतिहास,  खाटू श्याम बाबा  का नाम, खाटू श्याम मंदिर जाने का रास्ता,  खाटू श्याम जी आरती  को पढ़ सकते हैं – खाटू श्याम का इतिहास (khatu shyam story in hindi)

खाटू श्याम कब जाना चाहिए

कौन हैं खाटू श्याम जी? – Khatu Shyam History | खाटू श्याम हिस्ट्री

Khatu Shyam History

खाटू श्याम का इतिहास: खाटू श्याम को पहले  बर्बरीक के नाम से जाना जाता था बर्बरीक से खाटू श्याम तक का सफर  महाभारत काल से शुरू होता है बर्बरीक बचपन से ही एक महान योद्धा थे  जो घटोत्कच  व  मोरवी  के पुत्र हैं बर्बरीक ने युद्ध की कला अपनी मां मोरवी और भगवान श्रीकृष्ण से प्राप्त की थी  फिर भगवान श्री कृष्ण के कहने पर बर्बरीक ने  मां दुर्गा की घोर तपस्या कर मां दुर्गा को प्रसन्न किया और उनसे तीन अमोघ बाण प्राप्त हुए  इसी कारण से  खाटू श्याम/ बर्बरीक  तीन बाण धारी  के नाम से भी जाने जाते हैं और उनकी तपस्या को देख अग्निदेव ने  भी  उन्हें  एक ऐसा धनुष प्रदान किया  जो  इन्हें तीनों लोकों पर विजय दिला सकता था कलयुग में बर्बरीक को ही खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है और बर्बरीक को “श्याम”  नाम  भगवान श्री कृष्ण ने  दिया था – khatu shyam story

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खाटू श्याम जी का इतिहास – Khatu Shyam History in Hindi

Khatu Shyam History | श्री खाटू श्याम बाबा कौन हैं, खाटू श्याम की कहानी | Shyam Baba ki kahani

खाटू श्याम जी का इतिहास ( Khatu Shyam History ) बहुत ही रोमांचक है जिसे जानने के लिए हमें महाभारत कथा में चलना पड़ेगा जैसा कि हमने ऊपर दिए हुए पंक्तियों में  पढ़ा की बर्बरीक ने श्री कृष्ण जी के कहने पर  मां दुर्गा की घोर तपस्या की और उनसे वरदान स्वरुप तीन बाण और अग्निदेव द्वारा धनुष प्राप्त हुआ था, इधर महाभारत में  पांडवों और कौरवों के बीच  महाभारत का युद्ध चल रहा था  जैसे ही इस महाभारत के युद्ध की जानकारी बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी  इस युद्ध में शामिल होने के लिए अपनी इच्छा जताई और अपनी मां से आशीर्वाद लेने के लिए गए आशीर्वाद देते हुए  बर्बरीक की मां मतलब मां मोरवी ने बर्बरीक से हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन लिया फिर इसके  बाद बर्बरीक तीन बाण और धनुष के साथ अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार  होकर कुरुक्षेत्र की तरफ निकल पड़े !

जब यह बात भगवान श्री कृष्ण को पता चली कि बर्बरीक भी इस महाभारत की युद्ध में हिस्सा लेंगे तो भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को रोकने के लिए कुछ योजनाएं बनाई क्योंकि वह अच्छी तरीके से जानते थे की बर्बरीक हारे हुए पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे और इस युद्ध में  कौरवों की हार निश्चित थी और यदि  बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो युद्ध का परिणाम कुछ और ही होगा इसलिए  भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया  और बर्बरीक के सामने आकर खड़े हो गए और उनसे उनके बारे में जानने लगे जब बर्बरीक ने बताया कि वह महाभारत युद्ध में हिस्सा लेने जा रहे हैं भगवान श्री  कृष्ण  ने उनका मजाक उड़ाया और कहां इन तीन बातों को लेकर तुम महाभारत में युद्ध लड़ने जा रहे हो 

उस ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण की  इस बात को सुनकर बर्बरीक ने उन्हें बताया कि यह बाण कोई सामान्य बाण नहीं है  उन्हें यह बाण मां दुर्गा ने दिया है और मात्र सिर्फ एक बाण से ही  विजय प्राप्त की जा सकती है  इस बात को सुनकर  भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें पास में लगे एक पेड़ के सभी पत्तो को भेदने की चुनौती दी इस चुनौती को सुनकर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार कर ली  और अपने पीठ पर बंधे तीन बाण में से एक बाण निकाला और पेड़ के पत्तों की और चलाया उस बाण में छन भर में ही पेड़ के सभी पत्तो को भेद दिया और भगवान श्री कृष्ण के आसपास चक्कर लगाने लगा क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने उस पेड़ का एक पत्ता अपने पैरों के नीचे छुपा लिया था इस पर बर्बरीक ने उन्हें  अपना पैर हटाने को कहा नहीं तो यह बाण उनके पैर को भी भेद देगा 

खाटू श्याम हिस्ट्री: जब यह नजारा देखने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वह है  महाभारत के युद्ध में  किस पक्ष की और से शामिल होंगे तब बर्बरीक ने अपनी माता को दिए हुए वचन को दोहराते हुए कहा कि मैं इस युद्ध में  निर्बल और हार रहे पक्ष का साथ दूंगा मतलब उनकी ओर से  लडूंगा फिर श्री कृष्ण ने  बर्बरीक से दान की अभिलाषा  व्यक्त की इस पर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि जो भी वे मांगेंगे उन्हें बर्बरीक देंगे ब्राह्मण का वेश धारण किए हुए  भगवान श्री कृष्ण ने  बर्बरीक से दान में उनका  शीश माँगा और बर्बरीक वचन को निभाते हुए फाल्गुन मास की  द्वादशी को अपना शीश दान में दे दिया था  इसी कारण से उन्हें आज  शीश के दानी के नाम से भी जाना जाता है – खाटू श्याम का इतिहास

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बर्बरीक खाटू श्याम कैसे बने? | khatu shyam ji story | खाटू श्याम स्टोरी इन हिंदी

khatu shyam ji story: जब  ब्राह्मण ने बर्बरीक से दान में उनका शीश मांगा तब बर्बरीक समझ गए थे की यह ब्राह्मण कोई साधारण व्यक्ति नहीं है  क्योंकि ब्राह्मण कभी भी दान में किसी का शीश नहीं मांगते इस बात पर बर्बरीक ने ब्राह्मण रूप धारण श्रीकृष्ण से  उनके वास्तविक रूप से अवगत कराने का अनुरोध किया  और श्रीकृष्ण ने  बर्बरीक के अनुरोध को  स्वीकार करते हुए अपने वास्तविक रूप में  बर्बरीक को दर्शन दिए और बर्बरीक से महाभारत युद्ध में  युद्ध से पूर्व  भूमि पूजन के लिए  क्षत्रीय के शीश की आहुती की बात कहीं भगवान श्री कृष्ण की यह बात सुनकर  बर्बरीक ने  अपना शीश दान स्वरूप देने के लिए  तैयार हो गए लेकिन उन्होंने इस पूरे महाभारत युद्ध को देखने के लिए  भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की इस बात को भगवान श्री कृष्ण ने स्वीकारा और बर्बरीक के कटे हुए शीश को युद्धभूमि के समीप एक पहाड़ी पर रख दिया जहासे बर्बरीक ने इस पूरे महाभारत की युद्ध को देखा और भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक के बलिदान से प्रसन्न होकर कलयुग में श्याम नाम से पूजे जाने का आशीर्वाद दिया और भगवान श्याम का मंदिर(khatu shyam mandir ki history in hindi) खाटू नगर में होने के कारण वह खाटू श्याम के नाम से भी जाने जाते हैं -खाटू श्याम का इतिहास

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बर्बरीक के Khatu Shyam बनने की कहानी | khatu shyam story in Hindi 

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khatu shyam story in Hindi: जब  बर्बरीक ने  अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान स्वरूप में दे दिया तब भगवान श्रीकृष्ण बर्बरीक के इस बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि आने वाले कलयुग में बर्बरीक श्याम नाम से जाने जाएंगे और महाभारत के युद्ध के खत्म होने के बाद बर्बरीक का सिर राजस्थान राज्य के सीकर जिले  के खाटू नगर  में दफनाया गया वैसे बर्बरीक को श्याम नाम भगवान श्री कृष्ण ने दिया था लेकिन  खाटू नगर में  होने के कारण  उनका नाम  खाटू श्याम हो गया – खाटू श्याम का इतिहास इन हिंदी

Khatu Shyam Ji का मंदिर | Khatu Shyam Temple 

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खाटू श्याम का इतिहास / khatu shyam ka itihasखाटू श्याम जी के मंदिर की स्थापना एक बार खाटू नगर के राजा सो रहे थे तो उन्हें  एक सपना आया  जिसने उन्हें  मंदिर निर्माण और शीश सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया उसके बाद खाटू नगर के राजा ने  उस स्थान पर  मंदिर का निर्माण कराया और कार्तिक माह की एकादशी को इस मंदिर में शीश सुशोभित किया, और इस एकादशी को बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया  जाता है ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति अपनी मनोकामनाएं लेकर मंदिर में आते हैं भगवान खाटू उनके सारी मनोकामना को पूर्ण करते हैं और लाखों की संख्या में  प्रतिदिन  खाटू श्याम के भक्त उनके दर्शन करने आते हैं और उनके भक्त उन्हें  हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा के नाम से भी पुकारते हैं क्योंकि उनका भगवान खाटू पर पूरा विश्वास है कि बाबा श्याम उनके जीवन में खुशियां भरेंगे और समस्या का समाधान करेंगे – खाटू श्याम स्टोरी इन हिंदी

खाटू श्याम जी का इतिहास – Khatu Shyam History

FAQs – खाटू श्याम का इतिहास | Khatu Shyam Story in Hindi

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Q. खाटू श्याम पहले कौन थे?

खाटू श्याम का इतिहास  महाभारत  काल से शुरू होता है  जिसमें उनका नाम  बर्बरीक था

Q. खाटू श्याम किसका अवतार थे?

खाटू श्याम  महाभारत के बर्बरीक रूप है जिन्हें भगवान श्री कृष्ण ने  श्याम नाम दिया

Q. खाटू श्याम किसके पुत्र है

खाटू श्याम महाशक्तिशाली भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र है

खाटू श्याम का इतिहास khatu shyam history | Khatu Shyam Story

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