Holika Dahan Traditions: होलिका दहन हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जिसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली के एक दिन पहले मनाया जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और भक्त प्रह्लाद तथा होलिका की पौराणिक कथा पर आधारित है। होलिका दहन का उत्सव भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
इस ब्लॉग में, हम होलिका दहन परंपराएं (Holika Dahan traditions), होलिका दहन रीति-रिवाज (Holika Dahan rituals), होलिका दहन की विधि (Holika Dahan procedure), और होलिका दहन का महत्व (Significance of Holika Dahan) जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। अलग-अलग क्षेत्रों में मनाई जाने वाली अनूठी परंपराओं और प्राचीन रीति-रिवाजों के बारे में जानकर आप भी इस पावन पर्व को विधिवत तरीके से मना सकते हैं।
होलिका दहन की पौराणिक कथा | Mythological Story of Holika Dahan
होलिका दहन की परंपराओं और रीति-रिवाजों को समझने से पहले, इसकी पौराणिक कथा को जानना महत्वपूर्ण है:
हिरण्यकशिपु एक शक्तिशाली राक्षस राजा था, जिसने कठोर तपस्या के बाद ब्रह्मा जी से अमरत्व के समान वरदान प्राप्त किया था। इससे अहंकारी होकर, उसने स्वयं को ईश्वर घोषित कर दिया और सभी से अपनी पूजा करवाने लगा। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और हिरण्यकशिपु की आज्ञा का पालन नहीं करता था।
क्रोधित होकर, हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच जाता था। अंत में, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका ने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की इच्छा से होलिका जल गई और प्रह्लाद अग्नि से सुरक्षित बाहर आ गया।
इस घटना के बाद, हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाने लगा।
होलिका दहन के समय | Timing of Holika Dahan
होलिका दहन का समय विशेष महत्व रखता है और पारंपरिक रूप से इसे निम्नलिखित नियमों के अनुसार किया जाता है:
- प्रदोष काल में दहन: होलिका दहन सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल (संध्या समय) में किया जाता है, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो।
- पूर्णिमा तिथि का महत्व: यदि पूर्णिमा तिथि दो दिनों तक है, तो जिस दिन संध्या समय में पूर्णिमा तिथि हो, उसी दिन होलिका दहन करते हैं।
- नक्षत्र का प्रभाव: पारंपरिक रूप से उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन करना विशेष शुभ माना जाता है।
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होलिका निर्माण की परंपरा | Tradition of Holika Construction
होलिका का निर्माण एक महत्वपूर्ण परंपरा है और इसके अपने विशेष रीति-रिवाज हैं:
- लकड़ी एकत्र करना: होलिका दहन से कई दिन पहले, गांव या मोहल्ले के लोग मिलकर लकड़ियां, सूखे पत्ते और अन्य ज्वलनशील सामग्री एकत्र करना शुरू कर देते हैं।
- होलिका स्थापना स्थल: होलिका को आमतौर पर गांव के केंद्र या मंदिर के पास एक खुले स्थान पर स्थापित किया जाता है।
- होलिका की रचना: परंपरागत रूप से, होलिका के बीच में एक खंभा (चोटी) गाड़ा जाता है, जिसके चारों ओर लकड़ियां, सूखी घास और गोबर के उपले व्यवस्थित किए जाते हैं।
- होलिका की सजावट: कई स्थानों पर होलिका को सजाने की परंपरा है, जिसमें रंगीन कपड़े, फूल और पत्तियां का उपयोग किया जाता है।
- प्रतीकात्मक होलिका-प्रह्लाद: कुछ क्षेत्रों में, होलिका और प्रह्लाद की मूर्तियां या प्रतीक स्थापित किए जाते हैं।
होलिका दहन पूजा विधि | Holika Dahan Puja Procedure
Holika Dahan Traditions: होलिका दहन से पहले और दौरान किए जाने वाले पूजा विधि में निम्नलिखित परंपराएं शामिल हैं:
- स्नान और शुद्धि: होलिका दहन के दिन, लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं।
- पूजा सामग्री तैयार करना: होलिका पूजन के लिए रोली, मौली, अक्षत, फूल, फल, मिठाई, हल्दी, कुमकुम, गुलाल, कच्चा सूत, नारियल, और गंगाजल आदि तैयार किया जाता है।
- होलिका पूजन: संध्या के समय, परिवार के सदस्य मिलकर होलिका का पूजन करते हैं। पूजा में निम्नलिखित क्रम होता है:
- भूमि शुद्धिकरण
- कलश स्थापना
- गणेश पूजन
- होलिका देवी का आवाहन
- “ॐ होलिकायै नमः” मंत्र का जाप
- नैवेद्य अर्पण
- आरती
- अग्नि प्रज्वलन: पूजा के बाद, होलिका में अग्नि प्रज्वलित की जाती है। पारंपरिक रूप से, गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति या पुजारी द्वारा होलिका में आग लगाई जाती है।
- परिक्रमा: होलिका के चारों ओर सात या अधिक बार परिक्रमा करने की परंपरा है। इस दौरान, “होलिका दहन मंत्र” का जाप किया जाता है।
- अर्घ्य देना: होलिका की अग्नि को जल से अर्घ्य दिया जाता है और गुलाल अर्पित किया जाता है।
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होलिका दहन के दौरान प्रसिद्ध रीति-रिवाज | Holika Dahan
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होलिका दहन के दौरान विविध रीति-रिवाज प्रचलित हैं:
1. उत्तर भारत की परंपराएं | North Indian Traditions
- होलिका गीत: उत्तर भारत में, महिलाएं होलिका के चारों ओर बैठकर पारंपरिक होलिका गीत गाती हैं, जिनमें प्रह्लाद की भक्ति और होलिका दहन की कथा का वर्णन होता है।
- गुड़ और गेहूं की रोटी: कई घरों में, गुड़ और गेहूं की विशेष रोटी बनाई जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
- चना चबाना: होलिका के चारों ओर बैठकर, लोग भुने हुए चने और गुड़ खाते हैं, जो मौसम के अनुसार स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
- नई फसल अर्पण: किसान अपनी नई फसल का एक हिस्सा होलिका अग्नि में अर्पित करते हैं, जिससे आने वाले वर्ष में अच्छी फसल की कामना की जाती है।
2. पूर्वी भारत की परंपराएं | East Indian Traditions
- दोल पूर्णिमा: पश्चिम बंगाल और ओडिशा में, इस दिन को ‘दोल पूर्णिमा’ या ‘दोल जात्रा’ के रूप में मनाया जाता है, जहां भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों को झूले पर विराजमान किया जाता है।
- भासानी: कई स्थानों पर, होलिका दहन के बाद, इसकी राख को पवित्र नदियों में विसर्जित करने की परंपरा है।
- खोई की बाली: बिहार और झारखंड में, होलिका दहन के समय खोई (लावा) की बालियां पकाई जाती हैं, जिन्हें परिवार के सदस्य मिलकर खाते हैं।
3. पश्चिमी भारत की परंपराएं | West Indian Traditions
- शमी वृक्ष की पूजा: राजस्थान के कुछ हिस्सों में, होलिका दहन के साथ-साथ शमी वृक्ष की पूजा की जाती है, जिसे विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।
- गेर और भभूती: गुजरात में, पुरुष ‘गेर’ नामक एक पारंपरिक नृत्य करते हैं, और होलिका की भभूती (राख) को शुभ माना जाता है।
- होलिका माता की मूर्ति: कुछ स्थानों पर होलिका को माता के रूप में पूजा जाता है और उनकी मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है।
4. दक्षिण भारत की परंपराएं | South Indian Traditions
- कामदहन: दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में, इस दिन को ‘कामदहन’ के रूप में मनाया जाता है, जो कामदेव की याद में है, जिन्हें शिव जी के तीसरे नेत्र की अग्नि से भस्म कर दिया गया था।
- पंगुनि उत्तिरम: तमिलनाडु में, यह त्योहार ‘पंगुनि उत्तिरम’ के नाम से मनाया जाता है, जिसमें मुरुगन और देवयानी के विवाह का उत्सव मनाया जाता है।
- शकुनपु होली: आंध्र प्रदेश में, लोग ‘शकुनपु होली’ मनाते हैं, जिसमें धार्मिक अनुष्ठानों के साथ रंगों का त्योहार मनाया जाता है।
होलिका दहन के बाद की परंपराएं | Traditions After Holika Dahan
होलिका दहन के बाद भी कई महत्वपूर्ण परंपराएं निभाई जाती हैं:
- भस्म संग्रह: होलिका की भस्म को पवित्र माना जाता है। लोग इसे अपने घरों में लाते हैं और माथे पर लगाते हैं, जिसे शुभ माना जाता है।
- राख का उपयोग: होलिका की राख को घर की छत पर या खेतों में छिड़कने की परंपरा है, जिससे बुरी नजर और कीटों से सुरक्षा मिलती है।
- विशेष भोजन: होलिका दहन के बाद, परिवार के सदस्य मिलकर विशेष भोजन करते हैं, जिसमें मौसमी व्यंजन और मिठाइयां शामिल होती हैं।
- प्रसाद वितरण: होलिका पूजन के बाद, प्रसाद का वितरण किया जाता है, जिसमें गुड़, खील (लावा), बताशे और फल शामिल होते हैं।
- होली की तैयारी: होलिका दहन के बाद, अगले दिन होने वाली होली (धुलंडी) की तैयारियां शुरू हो जाती हैं, जिसमें रंग और पिचकारियां तैयार की जाती हैं।
विशेष अनुष्ठान और मान्यताएं | Special Rituals and Beliefs
होलिका दहन से जुड़े कुछ विशेष अनुष्ठान और मान्यताएं निम्नलिखित हैं:
- बाल कटवाना: कई क्षेत्रों में, होलिका दहन के दिन बच्चों के बाल कटवाने की परंपरा है, जिससे उन्हें बुरी नजर से बचाया जा सके।
- गाय की पूजा: कुछ क्षेत्रों में, होलिका दहन से पहले गाय की पूजा की जाती है और उन्हें विशेष भोजन खिलाया जाता है।
- चौराहे पर होलिका: कई स्थानों पर, होलिका को चौराहे पर स्थापित किया जाता है, जहां चार रास्ते मिलते हैं, जिसका अपना सांस्कृतिक महत्व है।
- अंगारे उतारना: कुछ स्थानों पर, होलिका दहन के बाद, उसके अंगारों (जलती हुई लकड़ियों) को उठाकर कुछ दूरी तक ले जाने और फिर फेंकने की परंपरा है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- कौड़ियों से भविष्यवाणी: कुछ क्षेत्रों में, होलिका दहन के बाद कौड़ियों से भविष्यवाणी करने की परंपरा है, जिससे आने वाले मौसम और फसल का अनुमान लगाया जाता है।
भारत में होलिका दहन की क्षेत्रीय विविधताएं | Regional Variations of Holika Dahan in India
भारत के विभिन्न राज्यों में होलिका दहन की अनूठी परंपराएं देखने को मिलती हैं:
उत्तर प्रदेश और बिहार | Uttar Pradesh and Bihar
- लठमार होली: मथुरा के बरसाना गांव में प्रसिद्ध “लठमार होली” होलिका दहन के बाद मनाई जाती है।
- होलिकोत्सव: अयोध्या में, राम मंदिर में विशेष होलिकोत्सव मनाया जाता है, जिसमें भगवान राम की आरती की जाती है।
राजस्थान | Rajasthan
- होलिका माता पूजा: राजस्थान के कई हिस्सों में, होलिका को माता के रूप में पूजा जाता है और उनकी मूर्ति स्थापित की जाती है।
- मेवाड़ की होलिका: उदयपुर में, महाराणा के नेतृत्व में राजकीय होलिका दहन होता है, जिसमें पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं।
महाराष्ट्र | Maharashtra
- रंगपंचमी: महाराष्ट्र में, होलिका दहन के पांच दिन बाद “रंगपंचमी” मनाई जाती है, जब रंगों का त्योहार अपने चरम पर होता है।
- शिमगा: कोंकण क्षेत्र में, होलिका दहन को “शिमगा” कहा जाता है, जिसमें विशेष ढोल-ताशे बजाए जाते हैं।
गुजरात | Gujarat
- होली की पोळी: गुजरात में, होलिका दहन के दिन विशेष “होली की पोळी” बनाने की परंपरा है, जो एक प्रकार की मीठी रोटी है।
- भवई नृत्य: कुछ क्षेत्रों में, होलिका दहन के समय “भवई” नामक पारंपरिक नृत्य किया जाता है।
होलिका दहन का आधुनिक रूप | Modern Form of Holika Dahan
आधुनिक समय में, होलिका दहन की परंपराओं में कुछ बदलाव आए हैं:
- पर्यावरण अनुकूल होलिका: पर्यावरणीय चिंताओं के कारण, अब कई स्थानों पर छोटी और पर्यावरण अनुकूल होलिका बनाई जाती है।
- सामूहिक उत्सव: शहरी क्षेत्रों में, अपार्टमेंट सोसाइटियों और निवासी कल्याण संघों द्वारा सामूहिक होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम: कई स्थानों पर, होलिका दहन के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन संध्या और सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है।
- धार्मिक पर्यटन: कुछ प्रसिद्ध मंदिरों और तीर्थ स्थलों पर, होलिका दहन पर्यटकों के लिए एक आकर्षण बन गया है।
- सोशल मीडिया साझाकरण: आजकल लोग होलिका दहन की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा करते हैं, जिससे यह परंपरा वैश्विक स्तर पर पहुंच रही है।
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होलिका दहन के वैज्ञानिक और सामाजिक लाभ | Scientific and Social Benefits of Holika Dahan
होलिका दहन की परंपराएं न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि इसके वैज्ञानिक और सामाजिक लाभ भी हैं:
- कीटाणुनाशक प्रभाव: वसंत ऋतु में होलिका दहन से वातावरण में मौजूद कीटाणु और रोगाणु नष्ट होते हैं, जिससे मौसमी बीमारियों से बचाव होता है।
- सामाजिक एकता: होलिका दहन एक सामूहिक उत्सव है, जिससे समुदाय के सदस्यों के बीच एकता और भाईचारा बढ़ता है।
- पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण: होलिका दहन की परंपराओं के माध्यम से, प्राचीन ज्ञान, मंत्र, गीत और कथाएं अगली पीढ़ी तक पहुंचती हैं।
- मौसम परिवर्तन अनुकूलन: होलिका दहन वसंत के आगमन का प्रतीक है और इसके द्वारा शरीर को गर्मी के मौसम के लिए तैयार किया जाता है।
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Conclusion: Holika Dahan Traditions & Rituals
Holika Dahan Traditions: होलिका दहन भारतीय संस्कृति का एक अमूल्य हिस्सा है, जिसमें अनेक प्राचीन परंपराएं और रीति-रिवाज निहित हैं। होलिका दहन की विधि और होलिका दहन रीति-रिवाज का पालन करके, हम न केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हैं, बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश भी फैलाते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में होलिका दहन संबंधी परंपराओं की विविधता हमारे देश की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती है। Holika Dahan traditions इतनी समृद्ध और विविध हैं कि वे हमें हमारी सामूहिक विरासत के प्रति गर्व महसूस कराती हैं।
आधुनिक समय में, हमें इन परंपराओं को पर्यावरण के अनुकूल बनाकर मनाना चाहिए और होलिका दहन का महत्व अगली पीढ़ी तक पहुंचाना चाहिए। होलिका दहन हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयां आएं, सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है और बुराई का अंत निश्चित है।
तो आइए, इस होलिका दहन पर हम सभी मिलकर इन प्राचीन परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन करें और अपने जीवन से नकारात्मकता को दूर करके सकारात्मकता का स्वागत करें। शुभ होलिका दहन!
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FAQs: Holika Dahan Traditions |होलिका दहन परंपराओं से जुड़े सामान्य प्रश्न
1. होलिका दहन क्यों मनाया जाता है?
होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह भक्त प्रह्लाद और होलिका की पौराणिक कथा पर आधारित है, जहां प्रह्लाद की भक्ति की शक्ति से होलिका अग्नि में जल गई और प्रह्लाद बच गया।
2. होलिका दहन के लिए शुभ समय क्या होता है?
होलिका दहन सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल (संध्या समय) में किया जाता है, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो। पारंपरिक रूप से उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन करना विशेष शुभ माना जाता है।
3. होलिका दहन से पहले क्या तैयारियां करनी चाहिए?
होलिका दहन से पहले शुद्ध स्नान करें, पवित्र वस्त्र धारण करें, और पूजा सामग्री जैसे रोली, मौली, अक्षत, फूल, फल, मिठाई, हल्दी, कुमकुम, गुलाल, कच्चा सूत, नारियल, और गंगाजल तैयार करें।
4. होलिका दहन के समय कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?
होलिका दहन के समय “ॐ होलिकायै नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके अलावा, अन्य पारंपरिक मंत्र जैसे “अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः। अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्” का जाप भी किया जाता है।
5. होलिका की परिक्रमा क्यों की जाती है और कितनी बार करनी चाहिए?
होलिका की परिक्रमा बुराई से मुक्ति और शुद्धि का प्रतीक है। पारंपरिक रूप से होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा करने की परंपरा है। यह संख्या सात ग्रहों और सप्तऋषियों का प्रतिनिधित्व करती है।
6. क्या होलिका दहन भारत के सभी हिस्सों में एक जैसे तरीके से मनाया जाता है?
नहीं, होलिका दहन भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में होलिका गीत और चना-गुड़ खाने की परंपरा है, पूर्वी भारत में इसे ‘दोल पूर्णिमा’ के रूप में मनाया जाता है, पश्चिमी भारत में शमी वृक्ष की पूजा की जाती है, और दक्षिण भारत में इसे ‘कामदहन’ के रूप में मनाया जाता है।
7. होलिका दहन के बाद की राख का क्या महत्व है?
होलिका की राख (भस्म) को पवित्र माना जाता है। इसे माथे पर लगाया जाता है, घर की छत पर या खेतों में छिड़का जाता है जिससे बुरी नजर और कीटों से सुरक्षा मिलती है। कई लोग इसे लाल कपड़े में बांधकर घर में रखते हैं, जिससे सौभाग्य और समृद्धि आती है।
8. होलिका दहन के समय कौन-कौन से खाद्य पदार्थ विशेष रूप से बनाए जाते हैं?
होलिका दहन के समय गुड़ और गेहूं की रोटी, भुने हुए चने, खील (लावा), बताशे, गुड़ के लड्डू और अन्य मौसमी व्यंजन विशेष रूप से बनाए जाते हैं। ये प्रसाद के रूप में भी वितरित किए जाते हैं।
9. क्या बच्चों को होलिका दहन में शामिल करना चाहिए?
हां, बच्चों को होलिका दहन में शामिल करना शुभ माना जाता है। यह उन्हें हमारी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ने का अवसर देता है। हालांकि, बच्चों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए और उन्हें अग्नि से सुरक्षित दूरी पर रखना चाहिए।
10. क्या होलिका दहन के कोई वैज्ञानिक लाभ भी हैं?
हां, होलिका दहन के कई वैज्ञानिक लाभ हैं। वसंत ऋतु में होलिका दहन से वातावरण में मौजूद कीटाणु और रोगाणु नष्ट होते हैं, जिससे मौसमी बीमारियों से बचाव होता है। यह शरीर को गर्मी के मौसम के लिए भी तैयार करता है।
11. क्या होलिका दहन की कोई विशेष मान्यताएं हैं?
हां, कई क्षेत्रों में होलिका दहन से जुड़ी विशेष मान्यताएं हैं। जैसे, इस दिन बच्चों के बाल कटवाना शुभ माना जाता है, होलिका की अग्नि से गेहरों (दानों) को दूर करने की मान्यता है, और होलिका की राख को घर में रखने से धन-धान्य की वृद्धि होती है।
12. क्या होलिका दहन की परंपरा में कालांतर में कोई बदलाव आया है?
हां, आधुनिक समय में होलिका दहन की परंपराओं में कुछ बदलाव आए हैं। पर्यावरणीय चिंताओं के कारण, अब कई स्थानों पर छोटी और पर्यावरण अनुकूल होलिका बनाई जाती है। शहरी क्षेत्रों में सामूहिक होलिका दहन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
13. क्या होलिका दहन के दौरान किसी विशेष प्रकार के वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं?
हां, कई क्षेत्रों में होलिका दहन के दौरान पारंपरिक वाद्य यंत्र जैसे ढोल, नगाड़े, शहनाई और मंजीरे बजाए जाते हैं। राजस्थान में, होलिका दहन के समय ‘होली धमाल’ नामक विशेष वाद्य वादन होता है।
14. क्या अलग-अलग क्षेत्रों में होलिका का निर्माण अलग-अलग तरीके से किया जाता है?
हां, होलिका के निर्माण में क्षेत्रीय विविधताएं हैं। कुछ स्थानों पर इसे बहुत ऊंचा बनाया जाता है, जबकि अन्य स्थानों पर छोटी होलिका बनाई जाती है। कुछ क्षेत्रों में होलिका के ऊपर होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं रखी जाती हैं, जबकि कुछ में केवल पुतला रखा जाता है।
15. होलिका दहन और होली के बीच क्या संबंध है?
होलिका दहन होली उत्सव का पहला दिन है, जो फाल्गुन पूर्णिमा की शाम को मनाया जाता है। इसके अगले दिन, होली या धुलंडी मनाई जाती है, जिसमें रंगों का त्योहार होता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जबकि होली खुशियों और रंगों का त्योहार है।